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उत्तराखंड में नहीं फटा बादल! वैज्ञानिकों का खुलासा चौंकाने वाला है

Uttarakhand Cloudburst: क्या सच में नहीं फटे बादल?

Uttarakhand Cloudburst: उत्तराखंड में बीते दिनों आई भीषण आपदा के बाद आम धारणा थी कि यह सब बादल फटने के कारण हुआ है। लेकिन मौसम वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने अब इस दावे को खारिज कर दिया है। मौसम विभाग का दावा है कि इस सीजन में एक भी ‘क्लाउडबर्स्ट’ की घटना रिकॉर्ड नहीं हुई है।

वैज्ञानिकों का बड़ा खुलासा: रिकॉर्ड में नहीं है कोई बादल फटना

मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने बताया कि बादल फटना तभी माना जाता है जब एक घंटे में 100 मिमी से अधिक बारिश होती है। लेकिन इस साल उत्तराखंड में ऐसी कोई घटना रिकॉर्ड नहीं हुई है।

बारिश की श्रेणियाँ:

  • 1–20 मिमी/घंटा – तीव्र बारिश
  • 20–50 मिमी/घंटा – अति तीव्र बारिश
  • 50–100 मिमी/घंटा – अत्यंत तीव्र बारिश
  • 100+ मिमी/घंटा – बादल फटना (क्लाउडबर्स्ट)

पहाड़ी भूगोल: कम बारिश में भी भारी तबाही

अटरिया विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. माधवन नायर राजीवन के अनुसार पहाड़ी क्षेत्रों में ज़रा सी बारिश भी भारी तबाही का कारण बन सकती है। ढलान वाले इलाकों में पानी के साथ मलबा और पत्थर बहते हैं, जिससे बाढ़ की स्थिति बन जाती है।

नहीं हुआ क्लाउडबर्स्ट, फिर भी भारी नुकसान

सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार, अब तक मानसून से जुड़े हादसों में राज्य को 5700 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है।

आपदा का असर:

  • 85 मौतें
  • 94 लोग लापता
  • 274 मकान पूरी तरह ध्वस्त
  • 192 मकानों को गंभीर नुकसान
  • 3726 को आंशिक क्षति

सामान्य से 22% अधिक बारिश

राज्य में एक जून से 9 सितंबर के बीच 1299.3 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि सामान्य बारिश 1060.7 मिमी होती है। यानी, इस बार 22% अधिक बारिश हुई।

➕ केवल 1–9 सितंबर के बीच 67% अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई।

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बदला बारिश का पैटर्न

वाडिया इंस्टीट्यूट द्वारा गंगोत्री और डोकरानी ग्लेशियर क्षेत्र में बारिश के पैटर्न पर रिसर्च चल रहा है।
निदेशक डॉ. विनीत गहलोत के अनुसार, जिस दिन आपदा आई, उस दिन हर्षिल में 20 मिमी जबकि डोकरानी क्षेत्र में 5 गुना अधिक बारिश रिकॉर्ड हुई।

बारिश बनी तबाही की असली वजह

उत्तराखंड में हालिया आपदा को बादल फटना मान लेना जल्दबाज़ी होगी। विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के मुताबिक, असमान्य रूप से तेज और लगातार हुई बारिश ही इस तबाही की असली वजह है। अगर वास्तव में बादल फटता, तो तबाही का स्तर और अधिक भयावह होता।

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