
गणगौर पूजा (Gangaur Puja), राजस्थान की प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में से एक है। विशेषकर महिलाएं इस पूजा को बड़ी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ करती हैं। इस बार गणगौर पूजा (Gangaur Puja) को लेकर जयपुर में खास धूमधाम मचने वाली है, खासकर बींद-बीनणी की बिंदौरी की धूम से। इस विशेष अवसर पर महिलाएं शीतला सप्तमी के दिन कुम्हार के चाक से मिट्टी लाकर गणगौर और ईसर बनाएंगी। इस पूजा का महत्व और इसे करने के तरीके को समझना न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
गणगौर पूजन का महत्व
गणगौर पूजा (Gangaur Puja) विशेष रूप से वसंत पंचमी के बाद एक महीने तक मनाई जाती है। यह पूजा विशेष रूप से महिलाओं के लिए है, जिनका मानना है कि इस पूजा के माध्यम से वे अपने पतियों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की काम
ना करती हैं। गणगौर, भगवान शिव और माता पार्वती के प्रतीक के रूप में पूजी जाती हैं। इस दिन विशेष रूप से महिलाएं अपने पति के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। इस अवसर पर पारंपरिक गीतों और रीतिरिवाजों का पालन किया जाता है।

मिट्टी से बनाए जाएंगे गणगौर और ईसर
शीतला सप्तमी के दिन महिलाएं कुम्हार के घर जाकर मिट्टी लाती हैं और उस मिट्टी से गणगौर और ईसर बनाएंगी। इस परंपरा में महिलाएं गीत गाती हुई कुम्हार के घर जाती हैं और वहां से मिट्टी लेकर आती हैं। मिट्टी से बने गणगौर और ईसर का पूजा के लिए विशेष महत्व है। ये मूर्तियां घर के आंगन में रखी जाती हैं और फिर इनकी पूजा की जाती है। इन मूर्तियों के माध्यम से पूजा का उद्देश्य मां पार्वती और भगवान शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करना होता है।
बींद-बीनणी की बिंदौरी और गाजेबाजे की धूम
गणगौर पूजा (Gangaur Puja) के दौरान एक और विशेष परंपरा है, जिसे बींद-बीनणी की बिंदौरी कहते हैं। इस दिन विशेष रूप से छोटे बच्चों को बींद-बीनणी में तैयार किया जाता है। ये बच्चे पारंपरिक पहनावे में सजे होते हैं और गाजेबाजे के साथ बिंदौरी (सिर पर मिट्टी की बालियां और गहनों के साथ सजाए गए गाड़ी) निकाली जाती है। यह बिंदौरी पूरे शहर में एक खास धूम मचाती है।
बींद-बीनणी की बिंदौरी के समय महिलाएं गीत गाती हैं, और आसपास के लोग वार फेरी करते हैं। यह एक प्रकार से सांस्कृतिक उत्सव होता है जिसमें समाज के लोग एक साथ मिलकर आनंदित होते हैं। बास्योड़ा की शाम को जयपुर के हर गली से यह बिंदौरी निकलती है, और गाजेबाजे के साथ महिलाएं और बच्चे इस अवसर को और भी खास बना देते हैं।
गणगौर पूजा की दिनचर्या
गणगौर पूजा (Gangaur Puja) की दिनचर्या 16 दिनों तक चलती है, और हर दिन इसमें खास दिनचर्याएं होती हैं। गणगौर को पानी पिलाना, दूब लाना, और अन्य पूजन विधियों का पालन करना होता है। इस पूरे समय में महिलाएं गीत गाती हैं और पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करती हैं। इस दिन विशेष रूप से हर महिला का ध्यान गणगौर की देखभाल में होता है और वे उसे हर दिन नया पानी पिलाती हैं। इसके अलावा, सीठना और बधावा के गीत भी गाए जाते हैं। ये गीत पूजा की विशेषता को और अधिक श्रद्धापूर्वक बनाते हैं।
गणगौर पूजा के महत्व को समझते हुए
गणगौर पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह राजस्थान की संस्कृति और परंपरा को भी प्रकट करती है। यह पूजा न केवल महिला को अपने पति और परिवार के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर देती है, बल्कि यह समाज को भी एकजुट करने का माध्यम बनती है।
राजस्थान की लोक कला और गीत-संगीत भी इस पूजा के अनिवार्य अंग हैं। यह पूजा पारंपरिक रूप से गाए गए गीतों, नृत्य और धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखती है। गणगौर के दिन महिलाएं अपने घरों में विशेष पकवान भी बनाती हैं, और फिर परिवार के साथ मिलकर पूजा करती हैं।
Readalso: सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) के मिशन के साइलेंट हीरो उनके पति माइकल, ऐसी थी उनकी लव स्टोरी
आधुनिक समय में गणगौर पूजा (Gangaur Puja)
समय के साथ गणगौर पूजा में कुछ बदलाव जरूर आए हैं, लेकिन पारंपरिक महत्व और रीतिरिवाजों को लेकर महिलाएं आज भी उतनी ही श्रद्धा और भावनाओं से इस पूजा को करती हैं। हालांकि आजकल महिला के साथ पुरुष भी इस पूजा का हिस्सा बनने लगे हैं और इसे एक पारिवारिक उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है।
जयपुर और राजस्थान (Rajasthan) के अन्य हिस्सों में गणगौर पूजा (Gangaur Puja) के दिन बाजारों में रंग-बिरंगे फूल, पकवान, और पूजा सामग्री बिकने लगती है। शहर के प्रमुख स्थानों पर बड़ी-बड़ी मूर्तियां सजाई जाती हैं, और वहां लोगों का जमावड़ा होता है। इस समय, शहर का माहौल एक खास उत्सव के जैसा नजर आता है।