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“गोवर्धन पूजा के दिन विश्वकर्मा पूजा: धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व”

गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा ((Vishwakarma Puja) का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। यह पूजा दीपावली के दूसरे दिन, यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को होती है। इस दिन गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) के साथ-साथ विश्वकर्मा की पूजा भी श्रद्धा पूर्वक की जाती है, खासकर शिल्पकारों और श्रमिक वर्ग द्वारा।

भगवान विश्वकर्मा की पूजा का कारण (Govardhan Puja in Hindi)

Why do we celebrate Vishwakarma day?
Why do we celebrate Vishwakarma day?

भगवान विश्वकर्मा का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था और उन्हें शिल्पकारों का देवता माना जाता है। वे देवताओं के वास्तुकार हैं और यांत्रिक विज्ञान तथा वास्तुकला के जनक माने जाते हैं। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) के दिन विश्वकर्मा की पूजा करना शुभ माना जाता है, इसलिए इस दिन दोनों पूजा का आयोजन किया जाता है। कुछ जगहों पर विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) साल में दो बार भी की जाती है।

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गोवर्धन पूजा का महत्व

Govardhan Puja
Govardhan Puja

गोवर्धन (Govardhan Puja) पूजा की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देवता के गर्व को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था, जिससे गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को कहा कि हर साल कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को 56 भोग बनाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाए। इस पर्वत से गोकुलवासियों को चारा मिलता है और यह कृषि के लिए आवश्यक वर्षा लाता है।

56 भोग का महत्व

Govardhan Puja
Govardhan Puja

अन्नकूट का त्योहार मनाने के पीछे मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब गोकुलवासियों ने 56 भोग तैयार किए और उन्हें श्रीकृष्ण को अर्पित किया। इससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को आशीर्वाद दिया।

इस तरह, गोवर्धन पूजा और विश्वकर्मा पूजा का एक साथ होना न केवल धार्मिक परंपरा को दर्शाता है, बल्कि यह समर्पण और श्रद्धा का प्रतीक भी है।

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