
Boycott Turkey: भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान तुर्की द्वारा पाकिस्तान को समर्थन देने के बाद भारत में तुर्की सेबों के बॉयकॉट (Boycott of Turkish apples) ने रफ्तार पकड़ ली है। जानकारी के मुताबिक, इस बहिष्कार के चलते तुर्की को 821 करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है। साथ ही, भारतीय बाजार में तुर्की सेबों की मांग 50% तक गिरावट दर्ज की गई है।
क्यों बढ़ा बॉयकॉट?
- पाकिस्तान समर्थन: पुलवामा हमले के बाद भारत के सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन सप्लाई जैसी सैन्य मदद की।
- जनभावनाओं का असर: भारतीय उपभोक्ताओं ने सोशल मीडिया पर #BoycottTurkishProducts ट्रेंड करते हुए सेबों का बहिष्कार शुरू किया।
- घरेलू बागवानों को बचाव: सस्ते तुर्की सेबों ने कश्मीर, हिमाचल समेत भारतीय उत्पादकों की बाजार हिस्सेदारी घटाई।
आयात आंकड़ों में झलकता संकट
वर्ष | सेब आयात (करोड़ रुपए में) |
---|---|
2021-22 | 563 |
2022-23 | 739 |
2023-24 | 821 |
- तुर्की से सेब आयात पिछले 3 साल में 45% बढ़ा, लेकिन अब बॉयकॉट से आंकड़े उलटे।
- भारत की नई रणनीति: व्यापारी अब कश्मीर, हिमाचल, ईरान, न्यूजीलैंड और वाशिंगटन से सेब मंगवा रहे हैं।
Boycott of Turkish apples : तुर्की को क्यों है डर?
- ऑफ-सीजन की डिमांड: भारत में घरेलू सेब साल के 6-7 महीने ही उपलब्ध होते हैं, बाकी समय आयात पर निर्भरता।
- मीठे और सस्ते सेब: तुर्की के सेबों की गुणवत्ता और सब्सिडी वाली कीमतें भारतीय बाजार में उन्हें पहली पसंद बनाती थीं।
- नुकसान का अनुमान: 2023-24 में तुर्की को 821 करोड़ का नुकसान, जो उसकी कुल निर्यात आय का 18% है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
वाणिज्य विशेषज्ञ राजीव मेहता के मुताबिक, “तुर्की को भारत के बाजार का महत्व समझना होगा। अगर बॉयकॉट (Boycott of Turkish apples) लंबा चला, तो उनके किसानों को सीधा झटका लगेगा।”
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भविष्य की चुनौती
- तुर्की का दबाव: अंकारा भारत सरकार से बातचीत कर रहा है, लेकिन दिल्ली का रुख साफ—“राजनीतिक समर्थन का असर व्यापार पर पड़ेगा।”
- भारत का फायदा: कश्मीरी सेबों की मांग बढ़ने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती।