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होर्मुज संकट: क्या 10 डॉलर महंगे होंगे कच्चे तेल? भारत की अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहा बड़ा खतरा!

🌍 होर्मुज संकट का भारत पर असर: चालू खाता घाटा और तेल आयात पर खतरा

ईरान और इस्राइल के बीच 13 जून 2025 से शुरू हुए सैन्य तनाव ने वैश्विक तेल बाजार में हलचल मचा दी है। इस भू-राजनीतिक तनाव का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी दिखने लगा है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ICRA के अनुसार अगर कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल 10 डॉलर का उछाल आता है, तो भारत का चालू खाता घाटा (India’s Current Account Deficit 2025) GDP का 0.3% तक बढ़ सकता है।

💹 80-90 डॉलर प्रति बैरल हुआ तो क्या होगा?

ICRA ने यह भी चेतावनी दी कि यदि वित्त वर्ष 2026 में कच्चे तेल की औसत कीमत 80 से 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचती है, तो चालू खाता घाटा GDP का 1.5% से 1.6% तक हो सकता है। यह भारत की वित्तीय स्थिरता और आर्थिक विकास दर पर दबाव बना सकता है।

🚢 होर्मुज जलडमरूमध्य की अहमियत और संकट (India’s Current Account Deficit 2025)

होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल ट्रांजिट पॉइंट्स में से एक है।

  • यहां से दुनिया का लगभग 33% तेल और LNG रोजाना गुजरता है।
  • भारत का 45-50% कच्चा तेल और 54% प्राकृतिक गैस इसी रास्ते से आती है।

अब ईरान द्वारा इस जलमार्ग को बंद करने की धमकी से तेल की आपूर्ति पर सीधा खतरा मंडरा रहा है।

📊 तेल महंगा, महंगाई ज्यादा

तेल कीमतों में वृद्धि सिर्फ आयात बिल तक सीमित नहीं रहेगी।

  • WPI (थोक मूल्य सूचकांक) में 80-100 बेसिस पॉइंट
  • CPI (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) में 20-30 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी संभव है।
    इसका असर आम आदमी की जेब पर दिखेगा — पेट्रोल, डीजल, ट्रांसपोर्ट, खाने-पीने की चीजें महंगी हो सकती हैं।

📉 जून में मिला-जुला रहा आर्थिक संकेत

ICRA के अनुसार जून 2025 में भारत की आर्थिक गतिविधियों में मिले-जुले संकेत मिले:

  • बिजली की मांग में सुधार
  • वाहन पंजीकरण में गिरावट
  • ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रैक्टर और दोपहिया की मांग में सुधार
  • शहरी मांग में आयकर में राहत और ब्याज दरों में कटौती से सहारा

हालांकि उत्पाद की उपलब्धता और कोर सेक्टर में सुस्ती चिंता का विषय बना हुआ है।

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📢 निष्कर्ष

होर्मुज संकट वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। भारत जैसे तेल-निर्भर देश के लिए यह संकट आयात बिल, चालू खाता घाटा और महंगाई तीनों मोर्चों पर दबाव बना सकता है। आने वाले महीनों में अगर यह संकट गहराता है, तो नीति निर्धारकों को रणनीतिक कदम उठाने की जरूरत होगी।

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