Axiom-4 मिशन: शुभांशु शुक्ला बने 634वें अंतरिक्ष यात्री, बोले– ‘यहां पहुंचकर घर जैसा महसूस हुआ’

नई दिल्ली। भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नया इतिहास रच दिया है। लखनऊ के निवासी शुभांशु शुक्ला (Astronaut Shubhanshu Shukla) अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय बने हैं। वह 634वें अंतरिक्ष यात्री हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष की यात्रा की है।
28 घंटे की ऐतिहासिक यात्रा
Axiom-4 मिशन के तहत शुभांशु (Astronaut Shubhanshu Shukla) ने 28.5 घंटे लंबी यात्रा पूरी कर 26 जून को भारतीय समयानुसार शाम 4:05 बजे ISS में कदम रखा। यह मिशन एलन मस्क की स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट से लॉन्च हुआ, जो फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से बुधवार दोपहर 12:01 बजे रवाना हुआ था।
स्वागत समारोह में बोले शुभांशु (Astronaut Shubhanshu Shukla)
आईएसएस में पहुंचने के बाद अपने स्वागत समारोह में शुभांशु ने कहा:
“मैं 634वां अंतरिक्ष यात्री हूं। यहां पहुंचना मेरे लिए गर्व का क्षण है। जैसे ही मैंने स्टेशन में कदम रखा, ऐसा लगा जैसे किसी ने अपने घर के दरवाजे मेरे लिए खोल दिए हों।”
उन्होंने बताया कि शुरुआती कुछ मिनटों में सिर भारी लग रहा था, लेकिन यह सामान्य बात है और धीरे-धीरे इसके आदी हो जाएंगे।
अगले 14 दिन होंगे बेहद खास
शुभांशु और उनके साथ गए तीन अंतरिक्ष यात्री — पोलैंड के स्लावोज उज्नान्स्की-विस्निवस्की, हंगरी के टिबोर कपू, और मिशन कमांडर पेगी व्हिटसन — मिलकर 60 वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। इनमें मधुमेह, इंसुलिन, सूक्ष्मगुरुत्व, बायोलॉजिकल रिसर्च और नई तकनीकें शामिल हैं।
“मैं तिरंगा लेकर आया हूं और अपने देश को यहां प्रतिनिधित्व कर रहा हूं,” शुभांशु ने गर्व से कहा।
भारतीय शिक्षण संस्थानों से जुड़े 7 प्रयोग
शुभांशु शुक्ला भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों द्वारा डिजाइन किए गए 7 बायोलॉजिकल प्रयोग भी करेंगे। साथ ही NASA के साथ मिलकर 5 अन्य प्रयोग भी किए जाएंगे जो दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए अहम डाटा देंगे।
41 साल बाद भारतीय की अंतरिक्ष में वापसी
1984 में राकेश शर्मा के बाद, 41 साल बाद किसी भारतीय ने अंतरिक्ष में कदम रखा है। हालांकि राकेश शर्मा रूसी मिशन से गए थे, लेकिन शुभांशु ISS में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं।
6 बार टला था मिशन
Axiom-4 मिशन को लॉन्च से पहले छह बार टाला गया। कभी मौसम खराब रहा, तो कभी तकनीकी गड़बड़ियों ने रोड़ा डाला। आखिरकार 26 जून को मिशन सफलता से पूरा हुआ।
✅ निष्कर्ष:
भारत के लिए यह क्षण ऐतिहासिक है। शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा सिर्फ एक वैज्ञानिक मिशन नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने वाली मिसाल बन चुकी है।