
🌧️ जयपुर के रामगढ़ में ड्रोन से कृत्रिम बारिश (Ramgarh Drone Artificial Rain) का पहला प्रयास विफल, वजह बना नेटवर्क और भीड़ का शोर
जयपुर : राजस्थान में सूखे की मार झेल रहे इलाकों में राहत की उम्मीद लेकर आया ड्रोन से कृत्रिम बारिश (Ramgarh Drone Artificial Rain) का प्रयोग मंगलवार को रामगढ़ बांध क्षेत्र में किया गया। लेकिन यह प्रयोग पहले ही प्रयास में विफल हो गया।
कारण? न तो तकनीक की कमी, बल्कि भीड़ का शोर और मोबाइल नेटवर्क का जाम।
🛑 क्या हुआ मौके पर?
सरकार और निजी कंपनियों की संयुक्त पहल से ड्रोन आधारित क्लाउड सीडिंग का यह पहला प्रयास जयपुर के रामगढ़ में किया गया।
लेकिन जैसे ही ड्रोन उड़ान भरने वाला था, बड़ी संख्या में लोग इसे देखने पहुंच गए, जिससे:
- मोबाइल नेटवर्क ओवरलोड हो गया
- ड्रोन का जीपीएस सिस्टम ठीक से काम नहीं कर पाया
- और ड्रोन जमीन पर ही रुक गया
स्थिति संभालने के लिए मौके पर पुलिस को भीड़ हटाने के लिए लाठीचार्ज करना पड़ा।
🧪 वैज्ञानिकों की ओर से क्या कहा गया?
एक्सेल-1 कंपनी के चीफ क्लाइमेट इंजीनियर डॉ. एन साई रेड्डी ने बताया:
“हमने ड्रोन को 400 फीट तक उड़ाने की योजना बनाई थी, लेकिन GPS में दिक्कत और बादलों की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण यह संभव नहीं हो पाया।”
प्रयोग से पहले वैज्ञानिकों ने विधिवत हवन और पूजा कर कृत्रिम वर्षा की सफलता की कामना भी की थी।
🌎 कौन कर रहा है यह प्रयोग?
- यह प्रयोग अमेरिका और बेंगलुरु की कंपनी जैनेक्स एआई द्वारा किया जा रहा है
- कृषि विभाग, मौसम विभाग और जिला प्रशासन से प्रयोग की मंजूरी मिल चुकी है
- DGCA (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने भी अनुमति दी है
- यह भारत में ड्रोन के जरिए किया गया पहला क्लाउड सीडिंग प्रयास है
अब तक देश में केवल एयरक्राफ्ट से क्लाउड सीडिंग होती रही है, लेकिन यह प्रयोग छोटे क्षेत्र में कम लागत वाला विकल्प माना जा रहा है।
🔭 आगे क्या?
वैज्ञानिकों का कहना है कि आगे के प्रयासों में:
- नेटवर्क-फ्री ज़ोन बनाया जाएगा
- आसपास की भीड़ को नियंत्रित किया जाएगा
- और तकनीकी समन्वय बेहतर किया जाएगा
यह प्रयोग अगर सफल होता है, तो यह सूखे से जूझ रहे राज्यों के लिए क्रांतिकारी समाधान साबित हो सकता है।
“रामगढ़ ड्रोन कृत्रिम बारिश” प्रयोग भले ही पहले प्रयास में सफल नहीं हो सका, लेकिन यह दिखाता है कि भारत में अब वर्षा नियंत्रण तकनीकों की ओर तेजी से कदम बढ़ रहे हैं। वैज्ञानिकों की टीम आगे और भी प्रयास करेगी ताकि यह प्रयोग भविष्य में जल संकट के समाधान का अहम हिस्सा बन सके।