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दिल्ली में होगी क्लाउड-सीडिंग: 23 अक्टूबर से विशेष विमानों से कृत्रिम बारिश, पीएम2.5 घटाने की तैयारी

Delhi cloud seeding — क्या और कब हो रहा है?

Delhi cloud seeding: ठंड के मौसम में दिल्ली-एनसीआर का वायु-प्रदूषण हर साल गंभीर समस्या बन जाता है। इस संकट से निपटने के तौर पर दिल्ली सरकार, IIT कानपुर और भारतीय मौसम विभाग (IMD) मिलकर क्लाउड-सीडिंग (Cloud Seeding) का प्रयोग शुरू कर रहे हैं। ट्रायल 23 अक्टूबर 2025 से आरंभ होने की संभावना है — कानपुर से मेरठ तक पहुंचे एक विशेष विमान के बाद अगले दिनों (24–26 अक्टूबर) के भीतर क्रियान्वयन का परीक्षण किया जा सकता है। मौसम विभाग की अंतिम अनुमति मिलने पर ही ट्रायल शुरू होगा, जैसा कि पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने बताया।

क्लाउड-सीडिंग क्या है?

क्लाउड-सीडिंग मौसम संशोधन की तकनीक है जिसमें मौजूद नम बादलों में ऐसे एजेंट डाले जाते हैं जो जल कणों को संघटित कर बारिश के रूप में जमीन पर गिरने में मदद करते हैं। उद्देश्य यहाँ बारिश उत्पन्न करना नहीं बल्कि हवा में निलंबित PM2.5/PM10 जैसे प्रदूषक कणों को धोना और वायु-गुणवत्ता में तात्कालिक सुधार लाना है। यह पारंपरिक प्राकृतिक बारिश से भिन्न है — इस प्रक्रिया में मानव द्वारा बादलों को प्रेरित किया जाता है।

प्रक्रिया — क्या होगा और विमान कैसे काम करेंगे?

प्रोजेक्ट में पाँच संशोधित हल्के सेसना विमान उपयोग में लाए जाएंगे। हर विमान में सीमित संख्या में पैकेट/कॉन्टेनर लगे होंगे (आपके उल्लेखानुसार 8–10), जिनमें क्लाउड-सीडिंग सामग्री रखी जाती है। ये सामग्री आमतौर पर वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित एजेंट होते हैं, जैसे सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, ड्राई-आइस या नमक — जिन्हें बादलों में सही परिस्थितियों में छोड़ने पर जल कणों के विकास को बढ़ावा मिलता है और बारिश के अवसर बढ़ते हैं। हवाओं, बादल के प्रकार और नमी के प्रतिशत (आम तौर पर कम से कम 50% नमी) जैसी परिस्थितियों का मिलान करके संचालन किया जाएगा। प्रत्येक उड़ान अनुमानतः 90 मिनट तक चलेगी और लक्षित प्रदूषित क्षेत्रों — विशेषकर उत्तर-पश्चिम दिल्ली के इलाकों — पर केंद्रित रहेगी।

नोट: ट्रायल के दौरान मौसम विभाग (IMD) द्वारा सतत निगरानी व अनुमति आवश्यक है; केवल अनुमोदित वैज्ञानिक प्रोटोकॉल का ही पालन किया जाएगा।

असर: क्या उम्मीद रखी जा सकती है?

ट्रायल सफल रहा तो छोटे-मध्यम स्तर की बारिश से सीमा-काल में वायु-गुणवत्ता में सुधार संभव है — विशेषकर PM2.5 कणों का समयिक धुलना। यह दीर्घकालिक समाधान नहीं, बल्कि प्रदूषण-शिखर के दौरान तात्कालिक राहत देने वाला उपाय माना जाता है। परियोजना की अनुमानित लागत लगभग ₹3.21 करोड़ बताई जा रही है।

सुरक्षा, पर्यावरण और पारदर्शिता के सवाल

किसी भी क्लाउड-सीडिंग अभियान में पारदर्शिता, पर्यावरण प्रभाव आकलन और स्वास्थ्य-सुरक्षा मानकों का पालन आवश्यक है। सरकारी और शैक्षणिक साझेदार (IIT कानपुर व IMD) के साथ यह ट्रायल वैज्ञानिक मानदण्डों पर आधारित रहेगा और सार्वजनिक प्रश्नों के जवाब देने के लिए प्रासंगिक रिपोर्ट उपलब्ध कराई जाएगी।

क्या संभावित-सीमाएँ हैं?

क्लाउड-सीडिंग की सफलता बादलों की प्रकृति, मौसमीय परिस्थितियों और तकनीकी सटीकता पर निर्भर करती है। हर बार स्पष्ट बारिश की गारंटी नहीं होती — इसलिए यह एक पूरक प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि प्रदूषण का पूर्ण समाधान।

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