राजस्थान

श्यालावास जेल में आत्मनिर्भरता की मिसाल! कैदियों ने बनाए ऊनी कंबल, पहली खेप उदयपुर के लिए रवाना

Shyalawas Jail Woolen Blankets: श्यालावास जेल के कैदियों ने बनाई आत्मनिर्भरता की राह

Shyalawas Jail Woolen Blankets: दौसा जिले की विशिष्ट केंद्रीय कारागार श्यालावास अब केवल एक सुधार गृह नहीं, बल्कि उत्पादन और कौशल विकास का प्रमुख केंद्र बन चुका है। जेल में कैदियों द्वारा आधुनिक मशीनों पर तैयार किए जा रहे उच्च गुणवत्ता वाले स्टील ग्रे ऊनी कंबल आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम हैं।

यह महत्वपूर्ण पहल जेल मुख्यालय, जयपुर और शिवांगन स्पिनर एक्सपोर्ट इंडिया, जयपुर के बीच हुए एमओयू के तहत शुरू हुई, जिसका उद्देश्य है—
✔ बंदियों को कौशल प्रशिक्षण
✔ उत्पादन आधारित पारिश्रमिक
✔ रिहाई के बाद सम्मानजनक पुनर्वास

जेल में स्थापित हुई अत्याधुनिक वस्त्र उत्पादन इकाई

इस इकाई में निम्नलिखित मशीनें स्थापित की गई हैं—

  • 5 रेपियर लूम
  • वारपिंग मशीन
  • मिलिंग मशीन
  • रेज़िंग मशीन
  • वाइंडर
  • सिलाई/एम्ब्रॉयडरी यूनिट
  • बेलिंग मशीन

जेल अधीक्षक पारस जांगिड ने बताया कि फिलहाल 10 बंदी रोज़ाना 8 घंटे कार्य कर रहे हैं। जल्द ही इस संख्या को 25–30 बंदियों तक बढ़ाने की योजना है।

356 कंबलों की पहली खेप उदयपुर रवाना

शनिवार को इस प्रयास का पहला परिणाम देखते हुए 356 कंबलों का प्रथम लॉट औपचारिक रूप से केंद्रीय कारागार उदयपुर के लिए भेजा गया।

इस अवसर पर—

  • जेल अधीक्षक पारस जांगिड
  • शिवांगन स्पिनर निदेशक श्री भाटी
  • जेलर सतेंद्र
    उपस्थित रहे।

कंबलों की गुणवत्ता—भारतीय मानकों के अनुरूप

शिवांगन स्पिनर के निदेशक भाटी ने बताया कि—

  • हर कंबल में 80% ऊन
  • वजन 2.450 किलोग्राम
  • आकार 230 सेमी × 152 सेमी
  • मूल्य ₹843 प्रति नग

ये सभी कंबल भारतीय गुणवत्ता मानकों के अनुसार तैयार किए गए हैं।

पुलिस विभाग का 2000 कंबलों का बड़ा ऑर्डर भी प्रक्रिया में

जेल अधीक्षक जांगिड ने बताया कि—
✔ राज्य की विभिन्न जेलों को नियमित आपूर्ति जारी है
✔ पुलिस विभाग से 2000 कंबलों का बड़ा ऑर्डर भी प्राप्त हुआ है
✔ जल्द ही इसकी आपूर्ति शुरू की जाएगी

यह उत्पादन इकाई—
बंदियों को रोजगार दे रही है
पुनर्वास का मजबूत आधार बन रही है
तथा राज्य की सप्लाई चेन में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है

श्यालावास जेल की यह पहल “सुधार के साथ सम्मानजनक रोजगार” की अवधारणा को नया आयाम दे रही है।
कैदियों के कौशल, मेहनत और समर्पण से तैयार कंबल न सिर्फ गुणवत्तापूर्ण हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भी सार्थक योगदान दे रहे हैं।

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