बिहार में वोटर लिस्ट पर घमासान! बिना आधार-आईडी कैसे हो रहा वेरिफिकेशन, सुप्रीम कोर्ट ने पूछे कड़े सवाल

पटना। बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन को लेकर मचा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। चुनाव आयोग ने एक आदेश जारी कर 11 दस्तावेजों के आधार पर वोटर वेरिफिकेशन को अनिवार्य कर दिया है, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि इसमें आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड शामिल नहीं हैं।
Bihar Voter List Dispute: अब सवाल उठ रहा है कि दूसरे राज्यों में वोटर आईडी कार्ड कैसे बनता है और क्या वहां आधार अनिवार्य होता है? वहीं बिहार में ऐसी कौन सी बात है, जिसने इस प्रक्रिया को विवादों में ला दिया?
📌 कैसे बनता है वोटर आईडी कार्ड अन्य राज्यों में?
भारत में वोटर आईडी बनवाने की प्रक्रिया दो तरीकों से की जा सकती है:
✅ ऑनलाइन प्रक्रिया:
- ऑफिशियल पोर्टल NVSP या Voter Portal पर जाएं
- फॉर्म-6 भरें और डॉक्यूमेंट अपलोड करें
- मोबाइल व ईमेल से रजिस्ट्रेशन
- बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर आकर वेरिफिकेशन करता है
- 15-30 दिन में डिजिटल वोटर आईडी उपलब्ध

✅ ऑफलाइन प्रक्रिया:
- चुनाव कार्यालय या BLO से फॉर्म-6 प्राप्त करें
- डॉक्यूमेंट और फोटो संलग्न करें
- वेरिफिकेशन के बाद कार्ड डाक से भेजा जाता है
जरूरी डॉक्यूमेंट:
पहचान के लिए आधार/पैन/पासपोर्ट,
पते के लिए बिजली/रेंट बिल,
उम्र के लिए 10वीं मार्कशीट या जन्म प्रमाण पत्र।
⚠️ बिहार में विवाद क्यों (Bihar Voter List Dispute)?
बिहार में करीब 7.89 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से 2.93 करोड़ का वेरिफिकेशन प्रस्तावित है। जबकि 4.96 करोड़ वोटर्स पहले से लिस्ट में मौजूद हैं और उन्हें वेरिफिकेशन से छूट दी गई है।
2003 की वोटर लिस्ट को बेस मानते हुए चुनाव आयोग ने 3 कैटेगरी बनाई:
- 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे: जन्म तिथि या जन्म स्थान का प्रमाण
- 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे: जन्म तिथि या स्थान का प्रमाण
- 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे: जन्म तिथि, स्थान और माता-पिता के डॉक्यूमेंट अनिवार्य
🔍 आधार कार्ड को क्यों नहीं माना गया?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आयोग ने कहा, “आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।”
वहीं कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब चुनाव नजदीक हैं, तो वोटर लिस्ट रिवीजन का समय गलत क्यों चुना गया? क्या इससे किसी को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है?
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि वेरिफिकेशन प्रक्रिया नियमों के अनुसार होगी और बिना ठोस कारण के किसी का नाम नहीं हटाया जाएगा।
बिहार में चल रही वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि राजनीतिक और संवैधानिक बहस का मुद्दा बन चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग कैसे इस प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाता है।